शूरवीरों की कुंडली: सम्राट पृथ्वीराज चौहान

शूरवीरों की कुंडली: सम्राट पृथ्वीराज चौहान

पृथ्वीराज चौहान एक महान प्रतापी राजा थे। जो इनकी कुंडली को देखकर साफ़ समझ आता है। इनकी कुंडली में ऐसे कई योग हैं जो इनके महान और वीर राजा होने की गवाही देते हैं। तो देर नहीं करते हैं और देखते हैं महाराज पृथ्वीराज चौहान की कुंडली : 

वीर सम्राट पृथ्वीराज चौहान की कुंडली

ये मेष लग्न की कुंडली है जिसमें लग्न स्वामी मंगल सप्तम भाव में बैठकर लग्न को देख रहा है। यहाँ से इसकी दृष्टि दशम भाव में है, लग्न में है और धन भाव में है। इसके अलावा दशम भाव का स्वामी शनि पंचम भाव में सिंह राशि में है। अपनी तीसरी दृष्टी में तुला राशि में बैठे मंगल ग्रह हो देख रहा है। जो की शनि की उच्च राशि है। 

इसी प्रकार दशम भाव में मकर राशि है जो की मंगल का उच्च स्थान है। यहां मंगल अपनी चौथी दृष्टी से देख रहा है। इस स्थान को राज्य का स्थान भी कहा जाता है। यही कारण है कि पृथ्वी राज चौहान के शासन काल में उनके पराक्रम और बल का लोहा सभी मानते थे। बाहुबल के स्थान पर राहु के बैठे होने से उनकी शारीरिक शक्ति अपने चरम पर पहुंच गई है। यही बाहुबल था जिसके दम पर पृथ्वीराज चौहान ने कई रण जीते। 

इनकी कुंडली में राहु, मंगल और शनि ने इनके प्रताप, बल और धैर्य को इतना विस्तृत कर दिया कि इनके बल का डंका चारो ओर था। तीसरे और छठें भाव का स्वामी बुध मित्र राशि के साथ कर्म के भाव में बैठा है ये पृथ्वीराज चौहान की तार्किक शक्ति और योजना बद्ध तरीके से कार्य करने की क्षमता को दिखती है। ये स्थिति साफ़ करती है कि महान पृथ्वीराज चौहान केवल ताकत के कारण महान नहीं थे वो अपनी रणनीति और बौद्धिक कौशल में भी पारंगत थे। यही बुध का प्रभाव है की पृथ्वीराज चौहान केवल आवाज सुनकर ही निशाना भेदने की क्षमता रखते थे। इतिहास में इस पर चर्चा मिलती है कि जब ये अंधी अवस्था में मोहम्मद गौरी के दरबार में पहुंचे तो केवल उसकी आवाज़ को साध कर तीर चला दिया जिसने मोहम्मद गौरी का सर धड़ से अलग कर दिया (कहीं कहीं इसका वर्णन है)। 

इस जन्म कुंडली में चन्द्रमा चतुर्थ भाव का स्वामी होकर शत्रु भाव में बैठा है, गुरु बृहस्पति की दृष्टी चन्द्रमा में होने के कारण ये उनके स्वाभाव में उदारता और दया लाता है। यही कारण था कि  मोहम्मद गौरी को कई बार हराने के बाद भी उसे हर बार प्राण दान देकर छोड़ दिया। नीच का गुरु भाग्य स्थान का स्वामी होकर अपनी सातवीं दृष्टी से चतुर्थ भाव को देख रहा है जहाँ कर्क राशि है। ग्रहों की ये स्थिति बताती है कि इनको अपने सही कार्यों का भी सही फल नहीं मिला होगा। मुहम्मद गौरी को कई बार प्राणदान देने के बाद भी वही इनके जीवन के संघर्ष का कारण बना यही इस बात का सबसे बड़ा उदहारण है। 

गुरु की ये स्थिति राज काज में की जाने वाली चपलता को भी रोकती है इसलिए दया, धर्म और वीरता तो इस वीर शाषक में थी लेकिन रराजपाथ में चपलता नहीं दिखा पाने के कारन भी इनको कुछ संघर्ष रहे। सप्तम भाव का स्वामी शुक्र कर्म स्थान में और इस पर मंगल की चौथी दृष्टी इस बात को दर्शाती है कि ये शूरवीर राजा स्त्रियों का सम्मान करता था और इनका हृदय प्रेम से भरा हुआ था। इसके अलावा शुक्र धन स्थान का स्वामी होकर कर्म स्थान में है इसलिए इस राजा को कभी धन की कोई कमी नहीं रही। 

इनका जीवन सुख और संघर्ष का मिला जुला रूप था जिसकी बुनियाद कहीं न कहीं इनकी ही उदारता ने रखी थी। लेकिन किसके बाद भी पृथ्वीराज चौहान की वीरता आने वाली कई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।