शनिदेव कहीं आपसे नाराज़ तो नहीं, इन लक्षणों से होगी पहचान। बर्बाद होने से पहले करें उपाए।
शनिदेव कर्म का फल देते हैं और बुरे कर्म के लिए आपको कष्ट देते समय शनि देव बिलकुल भी दया नहीं करते हैं। इसलिए कोई भी नहीं चाहता कि शनि देव की बुरी दृष्टि उस पर पड़े। इसके उलट अगर शनि देव अच्छे कर्म का फल देते हैं तो रातों रात आपके सारे कष्ट ख़त्म हो जाते हैं। इसलिए कुंडली में शनिदेव की स्थिति सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। आइए जानते हैं वो लक्षण जो शनि देव की कुदृष्टि का संकेत होते हैं:
- शनिदेव अगर आपके रूष्ट हैं तो आपके कामों में बहुत अड़चन आने लगती है। आप कितनी भी मेहनत करें आपको उसका फल नहीं मिलता है।
- इस स्थिति में आपके पैसे रुकते हैं और काम काज सब बहुत धीमा हो जाता है।
- आपको ज़्यादा आलस आता है और काम को टालते बहुत हैं। जिससे आपके काम सही समय में पूरे नहीं होते है।
- शनि अगर शुभ फल देने की स्तिथि में ना हो तो आर्थिक नुक़सान भी बहुत हो जाता है।
- शरीर में दर्द विशेष कर हड्डियों का दर्द शनि के अशुभ फल की पहचान है।
- शनि काला और धीमा ग्रह है इसकी छाया पड़ने पर व्यक्ति नकारात्मक विचारों में घिर जाता है और तन मन दोनो से शिथिल महसूस करता है।
शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाए:
- किसी भी प्रकार से अनैतिक कार्य करने से शनिदेव नाराज़ होते हैं जैसे पराई स्त्री के साथ सम्बंध, चोरी, असहाय लोगों को सताना, माता पिता का अनादर। तो इन कार्यों से ख़ुद को बचाना शनि देव के दुस्प्रभाव से ख़ुद को बचने जैसा है।
- जुआँ, सट्टा, शराब, ब्याज के लिए लोगों को सताना जैसे कार्यों से भी बचना चाहिए और अपने से नीचे के लोगों का ध्यान रखना चाहिए।
- किसी जानवर आदि को सताने से भी शनि के अशुभ फल मिलते हैं। तो शनि देव को प्रसन्न करने के लिए जानवरों की सेवा करें, भैंस (महिष) को सूखा चारा खिलाइये इससे शनि के शुभ मिलते हैं।
- शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनि का रत्न नीलम (Blue Sapphire) या उपरत्न लजवर्त (Lapis Lazuli), कटेला (Amathysist) आदि, 7 मुखी रुद्राक्ष भी शनि शांति के लिए बहुत अच्छा उपाए है।
- सरसों का तेल दान करना, पीपल के नीचे दिया जलाना, शनिवार को दान देना, काले घोड़े की नाल का छल्ला धारण करना आदि भी शनिदेव के आसान उपाए हैं।
शनि के लिए वेदिक मंत्र है
ऊँ शन्नो देवीरभिष्टडआपो भवन्तुपीतये।
शनि का तांत्रित मंत्र है
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।
शनि का मंत्र
ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शन्योरभिस्त्रवन्तु न:। ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:।।
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