कुंडली में धन योग और माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के मंत्र

कुंडली में धन योग और माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के मंत्र

व्यक्ति की कुंडली में कुछ योग इस प्रकार के होते हैं जिनके बनने से ये तय हो जाता है कि व्यक्ति धनवान होगा और वो अपना सारा जीवन बहुत सुख समृद्धि और ऐश्वर्य का भोग करते हुए बिताएगा। 

जैसा की आप जानते हैं कि कुंडली में कुछ ग्रहों को शुभ कुछ को अशुभ और कुछ को क्रूर कहा गया है किन्तु इनमें से कोई भी आपको धनवान बना सकता है। बस ज़रूरत है इस बात को समझने कि और उसके अनुसार काम करने की। 

ये जानने से पहले की आपकी कुंडली में धन योग है या नहीं एक बार माँ लक्ष्मी का स्मरण करें और ये समझ लेते हैं की माँ लक्ष्मी एक ऐसी ऊर्जा है जो हमें आध्यात्मिक और भौतिक कल्याण के लिए प्रेरित करती हैं। माँ लक्ष्मी अपने 16 रूपों में हमें अपना आशीर्वाद देती हैं। माँ लक्ष्मी को ज्ञान, बुद्धि, बल, शौर्य, सौंदर्य, विजय, प्रसिद्धि, महत्वाकांक्षा, नैतिकता, सोना अथवा अन्य धन, अन्न, परमानन्द, सुख, स्वास्थ्य, आयु, और संतान देने वाली देवी माना जाता है। 

जन्म कुंडली में धन योग

ये तो तय है कि धन का आशीर्वाद केवल उनको मिलता है जो कर्म को प्राथमिकता देते हैं, इसलिए कुंडली में सामान्य रूप से पाए जाने वाले धन योग का सम्बन्ध कुंडली के कर्म भाव अर्थात दशम भाव से होता है। जन्म कुंडली का 10वां भाव कर्म का भाव होता है। आइये देखते हैं की किन परिस्थितिओं में और किन ग्रहों के साथ 10वें भाव का सम्बन्ध बनाता है धन योग : 

सूर्य ग्रह –

कुंडली के 10वें भाव में अगर मेष, कर्क, सिंह या धनु राशि हो और यहाँ पर सूर्य का आगमन हो जाये तो ऐसे व्यक्ति सेना अथवा अन्य सैन्य बल में बड़े पद पर जाते हैं। अगर यही सूर्य वृश्चिक राशि का हो जाये तो व्यक्ति चिकित्सा के क्षेत्र में उच्च पद पर आसीन होता है। 

चन्द्रमा ग्रह –

कुंडली के 10 वें भाव में यदि चन्द्रमा बलि होकर बैठा हो तो ऐसे वयक्ति भी धनवान हो सकते हैं। ये अगर दैनिक उपयोग की चीजों से सम्बंधित व्यापर करें तो खूब धन कमाते हैं। लेकिन यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि अगर यहीं चन्द्रमा की युति मंगल या शनिदेव से हो जाती है फिर इस काम में सफल होने की सम्भावना ना के बराबर हो जाती है। 

मंगल ग्रह –

कुंडली के दशम भाव में अगर मेष, सिंह, वृश्चिक या धनु राशि हो और यहाँ पर मंगल ग्रह उपस्थित हो तो व्यक्ति चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष कर सर्जरी में बहुत नाम और धन कमाता है। लेकिन अगर मंगल का सम्बन्ध यहाँ सूर्य से बन जाये तो व्यक्ति सोनार या लोहार का काम करता है। ये मंगल ग्रह से सम्बंधित प्रत्येक कार्य से धन अर्जित करते हैं। 

बुध ग्रह –

लग्न का, दूसरे, पांचवें, नवें या दशवें भाव का स्वामी होकर अगर बुध दशवें घर में हो और गुरु से किसी भी प्रकार से सम्बंधित हो रहा हो तो ऐसे लोग शिक्षा के क्षेत्र में अच्छी सफलता प्राप्त करते हैं। ये प्रोफ़ेसर या लेक्चरर के पद प्राप्त करते हैं और बुध अथवा गुरु की दशा सही समय पर मिले तो ये किसी महाविद्यालय का भार भी सम्हालते हैं।  

यही बुध अकेला बलि होकर 10वें भाव में हो तो ऐसे जातक बैंक में काम करते हैं। बैंकिंग के क्षेत्र में भी ये लोग बहुत अच्छा काम करते हैं और संभावनाएं बहुत आगे जाने तक की होती हैं। 

यही बुध अगर शुक्र के साथ युति या सम्बन्ध बना रहा हो तो जातक मीडिया, फैशन, फिल्म्स और विज्ञापन के क्षेत्र में नाम और शोहरत प्राप्त करता है।  

बृहस्पति ग्रह –

जहाँ सारे ग्रह दशम भाव में हों तो वह शुभ फल देते हैं लेकिन गुरु बृहस्पति 10वें भाव में नीच का माना जाता है। ऐसी स्थिति में इसका आंकलन 9वें भाव से करते हैं। जब ये 9वें भाव में हो या उससे सम्बंधित हो और शुभ फल देने की स्थिति में हो तो ऐसे जातक धर्म के मार्ग पर चलकर धार्मिक वस्तुओं से धनार्जन करते हैं। 

यहाँ अगर बृहस्पति राजयोगकारक हुआ तो जातक न्यायलय में न्यायाधीश के पद पर आसीन होता है। लेकिन यहीं अगर यहाँ गुरु से मंगल का सम्बन्ध हो जाये तो जातक वकील बनता है जो विशेषकर फौजदारी, जमीन और क्रिमिनल का विशेषज्ञ बनता है। यहाँ इनको बहुत नाम और धन प्राप्त होता है।  

शुक्र ग्रह –

दशवें भाव में शुक्र अगर लाभ देने की स्थिति में हो तो ये सौंदर्य प्रसाधन, महिलाओं के प्रयोग की वस्तुएं, फैशन और लग्ज़री से जुडी चीजों का काम करता है। ये इन वस्तुओं के निर्माण आदि का कार्य करते हैं।  लेकिन यहीं अगर शुक्र किसी तरह से 2रे भाव या इस भाव के स्वामी और पंचम भाव अथवा पंचम भाव के स्वामी के साथ सम्बन्ध स्थापित कर रहा हो तो ये जातक को गायन या वादन के क्षेत्र में ले जाता है और वहीँ धन तथा नाम कमाते हैं। 

शनि ग्रह –

यदि दशम भाव का शनि बलवान हो और मंगल से सम्बंधित हों तो को बिजली आदि से सम्बंधित क्षेत्र में जाने का निर्देश देता है। इसके आलावा अगर इस शनि का सम्बन्ध बुध से हो जाता है तो ऐसे लोग मैकेनिकल इंजीनियरी से अपना धनार्जन करते हैं। 

यहीं अगर इसका सम्बन्ध चर्तुथ भाव से या इस भाव के स्वामी से हो जाये तो फिर इनको तेल, कोयला, लोहा आदि के व्यापर में जाना चाहिए क्यूंकि इनका धन योग इनको इसी क्षेत्र से पैसा दिलाएगा।  यही अगर शनि देव किसी प्रकार से राहु से सम्बंधित हो जाएँ तो ये जातक चमड़े, रेगज़ीन आदि के व्यापर से नाम और धन प्राप्त करेगा। 

राहु ग्रह –

किसी जातक की कुंडली में राहु मिथुन राशि में हो और 10वे भाव में आकर विराजमान हो तो ऐसे लोगों का धन सेना, पुलिस और रेलवे के क्षेत्र से धन प्राप्त करते हैं। 

केतु ग्रह –

दशम भाव में केतु धनु और मीन राशि में हो तो जातक को व्यापार से खूब धन और वैभव प्राप्त करता है। लेकिन यहाँ ध्यान रखने वाली बात ये है कि ये ग्रह किसी भी प्रकार से शत्रु ग्रह के साथ न हो और न ही इस पर किसी पाप ग्रह की दृष्टी हो। यहाँ केतु के लाभ लेने के लिए आपको ये भी देखना पड़ेगा की ये ग्रह किसी अशुभ ग्रह की दृष्टी में तो नहीं है।  

इस प्रकार से धन के लिए देखे जाने वाले ग्रहों का भाव और इससे दूसरे ग्रहों का समन्वय देख कर इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि जातक कब कैसे और किस जगह से धन प्राप्त करेगा। 

अब मैं आपको कुछ ऐसे मंत्र बताने जा रहा हूँ जिनके जप से आपको माँ लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद मिलेगा और धन-धान्य, सम्पन्नता को लेकर आपकी मनोकामना पूरी होगी। इन मन्त्रों के जप से आपके चारों तरफ एक ऐसा ऊर्जा क्षेत्र बनता है जो धन और भाग्य को आकर्षित करता है: 

भाग्य में वृद्धि और निर्धनता के भाव से मुक्ति के लिए : 

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्रयं नाशय, प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ।

इस लक्ष्मी मंत्र का दीपावली में जप किया जाता है : 

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ। 

अपने कार्यालय या दुकान आदि में जाने से पहले प्रतिदिन जपने के लिए मंत्र : 

ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा। 

देवी महालक्ष्मी के आशीर्वाद से धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए मंत्र : 

ॐ सर्वबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्य सुतान्वितः। 

मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॐ।  

ये लक्ष्मी गायत्री मंत्र है जिससे व्यक्ति को समृद्धि और सफलता मिलती है : 

ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात ॐ।