Kamakhya Temple: रहस्‍यमयी मंदिर जहां योनी की पूजा होती है

Kamakhya Temple: रहस्‍यमयी मंदिर जहां योनी की पूजा होती है 

Kamakhya Temple II Kamakhya Mandir II Kamakhya Devi Temple II Famous Temple of Guvahati II Temple Timings Ii Temple Rituals II मां कामाख्‍या मंदिर।। कामाख्‍या मंदिर का प्रसाद।।

Kamakhya Temple महत्‍वपूर्ण तथ्‍य 

  • Kamakhya Temple 51 (तंत्र चूडामणि के अनुसार 52) शक्तिपीठों में से एक है। यह सबसे ज्‍यादा रहस्‍यमयी और शक्तिशाली शक्तिपीठ माना जाता है।
  • Kamakhya Temple पर देवी की योनी की पूजा होती है जो स्‍वयं में अनोखी बात है।
  • यह मंदिर तंत्र सिद्धि और तंत्र साधकों के लिए सबसे पवित्र जगह है इस कारण से इस मंदिर के आस-पास तांत्रिकों का जमावड़ा होता है। 
  • वर्ष में एक बार जून के महीने में मां कामाख्‍या देवी रजस्‍वला (मासिक धर्म) होती हैं और इस रक्‍त से पूरी ब्रह्मपुत्र नदी का रंग लाल हो जाता है। 
  • हर वर्ष Kamakhya Temple जून के महीने में अम्‍बुवाची मेला लगता है। यह उर्वरा शक्ति और जीवन को जन्‍म देने की शक्ति दर्शाता है।
  • इस मंदिर में प्रसाद में लाल रंग का कपड़ा मिलता है। वास्‍तव में यह कपड़ा मां के ‘रज’ से भीग कर गीला और लाल हो जाता है। 
  • एक समय ऐसा भी होता है जब Kamakhya Temple मंदिर में पुरूषों का प्रवेश वर्जित हो जाता है। यह समय जून में होता है जब तीन दिन के लिए गर्भगृह बंद किया जाता है इस दौरान मंदिर परिसर में पुरूषों का आना वर्जित रहता है।

Kamakhya Temple एक नजर में 

विशेषताविवरण
स्थाननीलांचल पर्वत, गुवाहाटी, असम
निर्माण काल8वीं शताब्दी
पुनर्निर्माण1565 ईस्वी
शैलीनिलाचल शैली
सामग्रीपत्थर और ईंट
आकार11 मीटर ऊंचा और 18 मीटर चौड़ा
संरचनामंदिर में पांच कक्ष हैं: गर्भगृह, अंतराल, जगमोहन, भोगमंडप और नटमंदिर
गर्भगृहयह एक गुफा है जिसमें देवी कामख्या की योनि की एक मूर्ति है
अंतरालयह एक छोटा सा कक्ष है जो गर्भगृह और जगमोहन को जोड़ता है
जगमोहनयह मुख्य कक्ष है जहां भक्त पूजा करते हैं
भोगमंडपयह एक बड़ा कक्ष है जहां देवी को प्रसाद चढ़ाया जाता है
नटमंदिरयह एक खुला हॉल है जहां नृत्य और संगीत के प्रदर्शन होते हैं
शिखरमंदिर का शिखर एक मधुमक्खी के छत्ते के आकार का है

कहां स्थित है Kamakhya Temple

भारत के असम राज्‍य के गुवाहटी शहर से करीब 8 किमी दूर नीलांचल की पहाडियों पर Kamakhya Temple है। वैसे तो यहां हर साल भक्‍तों की भीड़ होती है लेकिन जून में महीने में यहां जो मेला लगता है उसमें लाखों की संख्‍या में श्रृद्धालू आते हैं।

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Kamakhya Temple से जुड़ी पौराणित कथा

कामाख्‍या देवी मंदिर उस स्‍थान में निर्मित है जहां पर माता सती की योनी का हिस्‍सा गिरा था। 

अब आप सोच रहे होंगे कि योनी का हिस्‍सा गिरा ही क्‍यों तो उसके पीछे एक बहुत ही रोचक पौराणिक कहानी है। आइए इस कहानी को जानते हैं।  

प्राचीन काल में एक चक्रवर्ती राजा थे जिनका नाम था दक्ष प्रजापति। दक्ष प्रजापति की कन्‍या का नाम सती था। माता सती ने भगवान शिव का अपने पति के रूप में स्‍वीकार किया जो कि दक्ष प्रजापति को बिल्‍कुल भी नहीं पसंद था। 

एक बार दक्ष प्रजापति ने एक महायज्ञ का आयोजन किया लेकिन उसने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया लेकिन माता सती को बुलाया। देवी सती अपने पति भगवान शिव के बिना ही अपने पिता के घर इस महा आयोजन में पहुंच गई। यहां अपने पिता से माता सती ने शिव जी को न बुलाए जाने पर प्रश्‍न किया तो दक्ष ने भगवान शिव को लेकर अपशब्‍द कहे तथा देवी सती का भी घोर अपमान किया। 

अपने पति और पिता के बीच सामंजस्‍य बनाने की कोश‍िश जब देवी सती को असफल होती प्रतीत हुई तब उन्‍होंने इसकी वजह स्‍वयं को जानकर विशाल हवन कुंड में कूद कर अपने प्राण देने का प्रयास किया। 

जैसे ही माता सती ने हवन कुंड में छलांग लगाई भगवान शिव मन की गति से वहां पहुंचे और देवी सती का जलता हुआ शरीर अपनी गोद में उठाकर क्रोध और शोक से भरे हुए पृथ्‍वी के चक्‍कर लगाने लगे। शिव की इस स्थिति को देश सभी चिंतित होकर भगवान विष्‍णु के पास पहुंचे और भगवान शिव को शांत कराने की प्रार्थना करने लगे। 

इस पर भगवान शिव ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े करना शुरू कर दिया। इसमें देवी सती के शरीर के कुल 51 टुकड़े पृथ्‍वी पर 51 जगहों पर पड़े और वहां शक्तिपीठ बना। जहां आज भी देवी सती के अलौकिक प्रेम, समर्पण और शक्ति की आराधना की जाती है। 

इसी क्रम में मां सती की योनी का हिस्‍सा जहां गिरा वहां आज कामाख्‍या शक्तिपीठ है जिसे ‘योनीपीठ’ के नाम से भी जाना जाता है।

Kamakhya Temple की बनावट

वास्‍तविक रूप से मंदिर का वर्तमान स्‍वरूप कई बार इसके पुर्ननिर्माण के बाद प्राप्‍त हुआ स्‍वरूप है जो किसी एक शैली से जुड़ा नहीं लगता। नीलांचल पर्वत की श्रृंखला में स्थित यह मंदिर और इसी बनावट एक अगल प्रकार के ही मालूम पड़ते हैं।  

तो आइए मंदिर की बनावट दिखाने के लिए आपको कामाख्‍या मंदिर ले चलते हैं। 

बाहर से Kamakhya Temple को देखने पर यह स्‍पष्‍ट होता है कि नीलांचर पर्वत की चट्टानों को काटकर बनाया गया है। इसका पुर्ननिर्माण 8र्वी से 16वीं शताब्‍दियों के बीच कई बार हुआ है। इतने प्रकार से निर्माण होने के बाद पुरातत्‍व वैज्ञानिकों ने इसे ‘नीलांचल शैली’ ही नाम दे दिया जो कि क्रूसीफॉर्म आधार पर एक अर्धगोलाकार गुंबद वाला मंदिर है।

अब Kamakhya Temple के प्रवेश द्वार के अंदर की ओर चलते हैं प्रांगण में ही देवी के 10 स्‍वरूपों की  मूर्तियां स्‍थापित हैं। इस मंदिर में चार अलग-अलग कक्ष हैं। सामान्‍य रूप से इनमें से एक को गर्भगृह और बाकी तीनों को मंडप कहा जाता है लेकिन यहां तीनों मंडपों को क्रमश: कलंता, पंचरत्‍न और नटमंदिर कहा जाता है।

Kamakhya Temple के मुख्‍य गर्भग्रह में पंचरथ गुम्‍बद बना है। यह बिल्‍कुल वही शैली है जो तेजपुर के सूर्य मंदिर में देखने को मिलती है। इस गर्भगृह में ही पत्‍थरों के बीच उभरे हुए योनी की आकृति है जिसकी पूजा की जाती है और इसी कारण से इसे ‘योनीपीठ’ भी कहते हैं।

इसके अलावा जो तीन मंडप हैं, जो भव्‍य हैं और यहां पर विशेष भजन, नृत्‍य प्रदर्शन तथा अन्‍य तैयारियां होती है। 

महत्‍वपूर्ण आयोजन 

जून के महीने में Kamakhya Temple में ‘अम्‍बूवाची मेला’ लगता है। यह इस मंदिर का सबसे बड़ा आयोजन है। इस दौरान यहां एक चमत्‍कार होता है। ऐसा बताया जाता है कि मुख्‍य मंदिर जिसमें एक योनी आकृति है जिसकी पूजा की जाती है वह रजस्‍वला हो जाती है। उससे इतना खून निकलता है कि ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल रंग का हो जाता है।

इस दौरान मंदिर में पुरूषों का प्रवेश भी निषेध रहता है। यहां पुजारी सफेद कपड़ा बिछा देते हैं और तीन दिन बाद जब गर्भगृह खोला जाता है तो वह सफेद कपड़ा लाल हो चुका होता है। फिर इसी कपड़े को प्रसाद स्‍वरूप यहां आने वाले श्रृद्धालुओं को दिया जाता है। 

इसके अलावा शारदीय नवरात्री में यहां 5 दिन का आयोजन होता है। जिसमें देश दुनिया से लोग आते हैं और यहां कुवारी पूजन करते हैं। 

यह तंत्र साधना का गण है इसलिए किसी भी आयोजन में यहां देश भर से तांत्रिकों का जमावड़ा लगता है। 

मान्‍यताएं 

Kamakhya Temple को लेकर मान्‍यता है कि यहां अगर कोई ऐसी स्‍त्री आकर मां से संतान प्राप्‍ति का आशीर्वाद मांगती है तो उसकी गोद जरूर भर जाती है।

इसके अलावा तंत्र सिद्धि प्राप्‍त करने के लिए भी यहां बहुत से तांत्रिक आते हैं। अगर कहा जाए कि मा Kamakhya Temple तंत्र साधना का केंद्र है तो यह अतिश्‍योक्‍ति नहीं होगी।

कब जाएं Kamakhya Temple

वैसे तो देवी की साधना के लिए आप यहां कभी भी आ सकते हैं। असम में पूरे वर्ष मौसम अच्‍छा होता है जिसमें ऐसी कोई समस्‍या नहीं होती कि यहां आने जाने में कठिनाई हो। लेकिन अगर आप Kamakhya Temple किसी विशेष अनुभव के लिए आना चाहते हैं तो अबसे अच्‍छा समय जून का है। इस माह तीन दिन के लिए मंदिर बंद होता है लेकिन मां के रजस्‍वला होने के बाद जब मंदिर खुलता है तो ‘अम्‍बूवाची’ मेला लगता है। इस मेले के दौरान यहां दूर-दूर से लोग आते हैं।

इसके अलावा नवरात्री के समय भी यहां श्रृद्धालुओं का तांता लगा रहता है। विशेष शारदीय नवरात्री में यहां 5 दिन का आयोजन होता है। यह समय भी यहां आकर अलग अनुभव होता है। 

निष्‍कर्ष 

51 शक्तिपीठ में से एक कामाख्‍या मंदिर मां के योनी स्‍वरूप के पूजन और तांत्रिकों का गण होने के कारण काफी चर्चा में रहा है। लेकिन यहां जून के माह में जब ब्रह्मपुत्र नदी का रंग लाल हो जाता है वह अपने आप में विस्‍मित करने वाला समय होता है। किसी पत्‍थरनुमा योनी से रजस्‍वला होना कोई सामान्‍य घटना नही है। 

यह स्‍त्री की उस शक्ति का प्रदर्शन करता है जिसमें वह श्रृष्‍ट‍ि के उस चक्र का केंद्र बिन्‍दु बनती हैं जिसमें नए जीवन की उत्‍पत्ति एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है। 

कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि कामाख्‍या मंदिर दुनिया का केंद्र बिन्‍दु है। 

कामाख्‍या मंदिर में किस देवी की पूजा होती है।

कामाख्‍या मंदिर में में कामाख्‍या देवी की पूजा होती है लेकिन यहां कोई मूर्ति नहीं है यहां मुख्‍य गर्भगृह में चट्टान पर उभरी हुई योनी की आकृति है और इस मंदिर में इसी की पूजा की जाती है।

कामाख्‍या मंदिर का निर्माण किसने करवाया।

यह अत्‍यंत प्राचीन मंदिर है और इसके प्रमाण कहीं नहीं है कि इसे किसने बनवाया था। हां आधुनिक खोजों से ये जरूर सामने आया है कि इस मंदिर का निचला हिस्‍सा 5वीं शताब्‍दी में बनवाया गया होगा। इस मंदिर में पुन:निर्माण की बातें कई बार सामने आई हैं।

कामाख्‍या मंदिर में पुरूष नहीं जा सकते? क्‍या ये सच बात है।

जी हां ये सच है कि कामाख्‍या मंदिर में पुरूषों का जाना वर्जित हैं लेकिन ये पाबंदी जून के महीने में केवल 3 दिन के लिए होती है जब देवी रजस्‍वला होती हैं। सामान्‍य दिनों में ऐसी कोई पाबंदी नहीं है।

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कुंभ– गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दाराशि रत्‍न नीलम राशि रुद्राक्ष 7 मुखी 
मीन– दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, चीराशि रत्‍न पुखराज राशि रुद्राक्ष 5 मुखी